Raamrakshastrotam - 1 in Hindi Spiritual Stories by puja books and stories PDF | रामरक्षास्तोत्रम्... 1

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रामरक्षास्तोत्रम्... 1

(⁠ʘ⁠ᴗ⁠ʘ⁠✿⁠)रामरक्षास्तोत्रम्(⁠ʘ⁠ᴗ⁠ʘ⁠✿⁠)

'रामरक्षाकवच' की सिद्धिकी विधि नवरात्रमें प्रतिदिन नौ दिनोंतक ब्राह्म मुहूर्तमें नित्य-कर्म तथा स्नानादि से निवृत्त हो शुद्ध वस्त्र धारणकर कुशा के आसन पर सुखासन लगाकर बैठ जाइये। भगवान् श्रीराम के कल्याणकारी स्वरूप में चित्त को एकाग्र करके इस महान् फलदायी स्तोत्रका कम-से-कम ग्यारह बार और यदि यह न हो सके तो सात बार नियमित रूप से प्रतिदिन पाठ कीजिये। पाठ करने वाले की श्रीराम की शक्तियों के प्रति जितनी अखण्ड श्रद्धा होगी, उतना ही फल प्राप्त होगा। वैसे 'रामरक्षाकवच' कुछ लंबा है, पर इस संक्षिप्त रूप से भी काम चल सकता है। पूर्ण
  शान्ति और विश्वास से इसका जाप होना चाहिये, यहाँ तक कि यह कण्ठस्थ हो जाय।

  विनियोगः

अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य बुधकौशिक ऋषिः श्रीसीतारामचन्द्रो देवता अनुष्टुप् छन्दः सीता शक्तिः श्रीमान् हनुमान् कीलकं श्रीरामचन्द्रप्रीत्यर्थे रामरक्षास्तोत्रजपे विनियोगः ।

इस रामरक्षास्तोत्र-मन्त्रके बुधकौशिक ऋषि हैं, सीता और रामचन्द्र देवता हैं, अनुष्टुप् छन्द है, सीता शक्ति हैं, श्रीमान् हनुमान् जी कीलक हैं तथा श्रीरामचन्द्रजी की प्रसन्नता के लिये रामरक्षास्तोत्र के जप में विनियोग किया जाता है।

       。⁠◕⁠‿⁠◕⁠。ध्यानम्。⁠◕⁠‿⁠◕⁠。

ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्धपद्मासनस्थं पीतं वासो वसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम्।

वामांकारूढसीतामुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभं नानालंकारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डलं रामचन्द्रम् ॥

जो धनुष-बाण धारण किये हुए हैं, बद्ध पद्मासन से विराजमान हैं, पीताम्बर पहने हुए हैं, जिनके प्रसन्न नयन नूतन कमल दल से स्पर्धा करते तथा वाम भाग में विराजमान श्रीसीता जी के मुख कमल से मिले हुए हैं, उन आजानुबाहु, मेघश्याम, नाना प्रकार के अलंकारों से विभूषित तथा विशाल जटाजूटधारी श्रीरामचन्द्र जी का ध्यान करे।

                     स्तोत्रम्

चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम् । एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम् ॥ १ ॥

श्रीरघुनाथजीका चरित्र सौ करोड़ विस्तार वाला है और उसका एक-एक अक्षर भी मनुष्यों के महान् पापों को नष्ट करने वाला है ॥ १ ॥

ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम् । जानकीलक्ष्मणोपेतं जटामुकुटमण्डितम् ॥ २॥

सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तंचरान्तकम्। स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम् ॥ ३ ॥

रामरक्षां पठेत्प्राज्ञः पापघ्नीं सर्वकामदाम् । शिरो मे राघवः पातु भालं दशरथात्मजः ॥ ४॥

जो नीलकमल के समान श्यामवर्ण, कमल-नयन जटाओंके मुकुटसे सुशोभित, हाथोंमें खड्ग, तूणीर, धनुष और बाण धारण करनेवाले, राक्षसोंके।  संहारकारी तथा संसारकी रक्षाके लिये अपनी लीला से ही अवतीर्ण हुए हैं, उन अजन्मा और सर्वव्यापक भगवान् राम का जानकी और लक्ष्मण जी के सहित स्मरण कर प्राज्ञ पुरुष इस सर्वकामप्रदा और पापविनाशिनी रामरक्षाका पाठ करे। मेरी सिर की राघव और ललाटकी दशरथात्मज रक्षा करें ॥ २-४ ॥

कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रियः श्रुती । घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सलः ॥ ५॥

कौसल्यानन्दन नेत्रोंकी रक्षा करें, विश्वामित्रप्रिय कानोंको सुरक्षित रखें तथा यज्ञरक्षक घ्राणकी और सौमित्रिवत्सल मुखकी रक्षा करें ॥ ५॥

जिह्वां विद्यानिधिः पातु कण्ठं भरतवन्दितः । स्कन्धौ दिव्यायुधः पातु भुजौ भग्नेशकार्मुकः ॥ ६ ॥

मेरी जिह्वाकी विद्यानिधि, कण्ठकी भरतवन्दित, कंधोंकी दिव्यायुध और भुजाओंकी भग्नेशकार्मुक (महादेवजीका धनुष तोड़नेवाले) रक्षा करें ॥ ६ ॥

करौ सीतापतिः पातु हृदयं जामदग्न्यजित् । मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रयः ॥ ७॥

हाथों  की सीतापति, हृदयकी जामदग्न्यजित् (परशुरामजीको जीतनेवाले), मध्यभाग की खरध्वंसी (खर नामके राक्षसका नाश करनेवाले) और नाभि की जाम्बवदाश्रय (जाम्बवान् के आश्रयस्वरूप) रक्षा करें ॥ ७ ॥



कमरकी सुग्रीवेश (सुग्रीवके स्वामी), सक्थियोंकी हनुमत्प्रभु और ऊरुओंकी राक्षसकुल-विनाशक रघुश्रेष्ठ रक्षा करें ॥ ८ ॥

जानुनी सेतुकृत्पातु जंघे दशमुखान्तकः । पादौ विभीषणश्रीदः पातु रामोऽखिलं वपुः ॥

९॥

जानुओंकी सेतुकृत्, जंघाओं की दशमुखान्तक (रावणको मारनेवाले), चरणोंकी विभीषणश्रीद (विभीषणको ऐश्वर्य प्रदान करनेवाले) और सम्पूर्ण शरीरकी श्रीराम रक्षा करें ॥ ९॥

एतां रामबलोपेतां रक्षां यः सुकृती पठेत् । स चिरायुः सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत् ॥ १०॥

जो पुण्यवान् पुरुष रामबलसे सम्पन्न इस रक्षाका पाठ करता है, वह दीर्घायु, सुखी, पुत्रवान्, विजयी और विनयसम्पन्न हो जाता है ॥ १० ॥

पातालभूतलव्योमचारिणश्छद्मचारिणः । न द्रष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभिः ॥ ११॥

जो जीव पाताल, पृथ्वी अथवा आकाशमें विचरते हैं और जो छद्मवेशसे घूमते रहते हैं, वे रामनामोंसे जानुनी सेतुकृत्पातु जंघे दशमुखान्तकः । पादौ विभीषणश्रीदः पातु रामोऽखिलं वपुः ॥

९॥

जानुओंकी सेतुकृत्, जंघाओंकी दशमुखान्तक (रावणको मारनेवाले), चरणोंकी विभीषणश्रीद (विभीषणको ऐश्वर्य प्रदान करनेवाले) और सम्पूर्ण शरीरकी श्रीराम रक्षा करें ॥ ९॥

एतां रामबलोपेतां रक्षां यः सुकृती पठेत् । स चिरायुः सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत् ॥ १०॥

जो पुण्यवान् पुरुष राम बल से सम्पन्न इस रक्षा का पाठ करता है, वह दीर्घायु, सुखी, पुत्रवान्, विजयी और विनय सम्पन्न हो जाता है ॥ १० ॥

पातालभूतलव्योमचारिणश्छद्मचारिणः । न द्रष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभिः ॥ ११॥

जो जीव पाताल, पृथ्वी अथवा आकाशमें विचरते हैं और जो छद्मवेश से घूमते रहते हैं, वे राम नामों से सुरक्षित पुरुष को देख भी नहीं सकते ॥ ११॥


रामेति रामभद्रेति रामचन्द्रेति वा स्मरन् । नरो न लिप्यते पापैर्भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ॥


१२॥


'राम', 'रामभद्र', 'रामचन्द्र' - इन नामोंका स्मरण करनेसे मनुष्य पापोंसे लिप्त नहीं होता तथा भोग और मोक्ष प्राप्त कर लेता है ॥ १२ ॥


जगज्जैत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम् । यः कण्ठे धारयेत्तस्य करस्थाः सर्वसिद्धयः ॥


१३॥


जो पुरुष जगत् को विजय करनेवाले एकमात्र मन्त्र राम नाम से सुरक्षित इस स्तोत्र को कण्ठ में धारण करता है (अर्थात् इसे कण्ठस्थ कर लेता है), सम्पूर्ण सिद्धियाँ उसके हस्तगत हो जाती हैं।


१३॥